पुरानी रिपोर्ट में हमने बताया था कि दसई जोत गांव में कीचड़ से लथपथ गलियां, जर्जर पंचायत भवन और नदारद सफाई व्यवस्था ने ग्रामीणों को जीना मुहाल कर दिया है। लेकिन अब जो तस्वीर सामने आई है, वो पहले से भी ज़्यादा चिंताजनक और शर्मनाक है।
चार महीने में दरक गया विकास!
ग्राम चौहान का पूरा में चार माह पूर्व बनवाया गया इंटरलॉकिंग खड़ंजा अब टूटकर बिखर रहा है। ईंटें उखड़ चुकी हैं, जगह-जगह गड्ढे बन गए हैं। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि निर्माण में गुणवत्ता का कितना ध्यान रखा गया।
वीरान पड़ा रोड बना उदासीनता की मिसाल
गांव को जोड़ने वाला वीरान पड़ा रोड सालों से वैसा ही पड़ा है — न मरम्मत, न चौड़ीकरण। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क मांगते-मांगते दो पीढ़ियां बीत गईं, लेकिन जिम्मेदारों के कानों तक यह आवाज़ आज तक नहीं पहुंची।
नालियां बनीं पर ढक्कन गायब
गांव में बनी नालियों पर ढक्कन तक नहीं लगाए गए हैं, जिससे बच्चों, बुजुर्गों और मवेशियों के लिए हादसे आम बात हो गए हैं। साफ है कि योजनाएं आधी-अधूरी छोड़ दी गईं और पूरा पैसा कागजों पर ‘पूरा’ दिखा दिया गया।
10 साल की प्रधानी, 0% विकास
बताया जा रहा है कि ग्राम प्रधान को लगभग 10 साल हो चुके हैं, लेकिन गांव की शक्ल और हालत जस की तस है। सवाल यह उठता है कि पंचायत फंड, मनरेगा बजट और केंद्र-राज्य योजनाओं के करोड़ों रुपये कहां खर्च हुए?
दीवारों पर विकास, ज़मीन पर विनाश
स्वच्छ भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना और ग्रामीण सड़क योजना जैसी योजनाओं के नाम सिर्फ दीवारों की शोभा बनकर रह गए हैं, जबकि गांव की गलियों में विकास की जगह धूल उड़ रही है।
अब सवालों का वक्त है:
- क्या 10 साल की प्रधानी में एक ढंग की सड़क भी नहीं बन सकती?
- क्या नालियों के ढक्कन लगवाना भी ‘बजट’ का बहाना बन गया है?
- क्या सरकारी योजनाएं सिर्फ फोटो खिंचवाने और दीवार रंगवाने तक सीमित हैं?



