कार्यक्रम का शुभारंभ एसआई सुषमा ने मां सरस्वती के चरणों में दीप प्रज्ज्वलन और पुष्पार्चन कर किया। एसआई सुषमा ने अपने उद्बोधन में माताओं और मातृशक्ति की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि बच्चों की पहली गुरु मां होती है और उनकी शिक्षा व संस्कार का प्रारंभ वहीं से होता है। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, वित्तीय स्वावलंबन, नेतृत्व क्षमता और समाज में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पर प्रकाश डालते हुए उदाहरण स्वरूप महिला क्रिकेट टीम की उपलब्धियों का उल्लेख किया, जिसने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी देश का गौरव बढ़ाया। एसआई सुषमा की प्रेरणादायक बातें माताओं और उपस्थित छात्राओं के लिए अनुकरणीय साबित हुई।
मुख्य वक्ता डॉ. करुणा वर्मा ने कुटुंब प्रबोधन और भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांत “वसुधैव कुटुंबकम्” पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भैया-बहनों में आपसी सामंजस्य बनाए रखना और बालिकाओं को उनके लक्ष्य तक पहुंचने के लिए स्वतंत्रता देना माताओं की सर्वोच्च जिम्मेदारी है। साथ ही उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण, ऊर्जा संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता आरती सिंह ने की, जिन्होंने सभी माताओं और मातृशक्तियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने और समाज में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया। विद्यालय की बहनों ने देश की वीरांगनाओं की झांकी प्रस्तुत की, जिसमें लक्ष्मीबाई, पद्मावती, जीजाबाई, दुर्गावती और भारत माता की भूमिकाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया।
प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का संचालन आशा दुबे ने किया, जिसमें माताओं और छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस अवसर पर विशिष्ट माताओं का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का समन्वय और संचालन ऊषा रानी और सोनम गौड ने किया, जबकि ज्योति श्रीवास्तव और नैन्सी मिश्रा की देखरेख में कार्यक्रम संपूर्ण रूप से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
प्रधानाचार्य राम तीरथ यादव ने समापन के अवसर पर सभी माताओं और उपस्थित अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम को संपन्न कराया। इस भव्य आयोजन में विद्यालय के शिक्षकों, छात्राओं और माताओं की सक्रिय भागीदारी ने कार्यक्रम की सफलता में अहम योगदान दिया।
एसआई सुषमा की प्रेरक उपस्थिति और उनके विचार इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहे, जिन्होंने माताओं और छात्राओं में आत्मविश्वास, समाज सेवा और सांस्कृतिक चेतना की भावना को और मजबूत किया।
