“दसई जोत: जहां विकास पांच साल से कोमा में है, और जिम्मेदारों की संवेदना स्थायी अवकाश पर”


 अयोध्या। ग्राम दसई जोत, मौजा गोकुलपुर, पोस्ट पौसरा, थाना गोसाईगंज, जिला अयोध्या
एक ओर सरकारें "विकास की पंचवर्षीय योजनाओं" की गूंज से आसमान भर रही हैं, दूसरी ओर दसई जोत गांव पांच सालों से विकास की मौत पर मातम मना रहा है। यहाँ विकास न तो रुका है, न थमा है — बल्कि पूरी तरह खत्म हो चुका है।

सड़कें नहीं, दलदल हैं

गांव की गलियां अब रास्ते नहीं, कीचड़ से भरे गड्ढे हैं। बारिश हो या धूप, पैदल चलना हो या बीमार को अस्पताल ले जाना — हर कदम एक संघर्ष है। तस्वीरें साफ़ बताती हैं कि यहां सड़कें नहीं, तालाब हैं, और नालियों के नाम पर गंदगी बह रही है।


पंचायत भवन — एक सरकारी मज़ाक

गांव का पंचायत भवन, जो योजनाओं का संचालन केंद्र होना चाहिए, अब खुद योजना बन चुका है — जीर्णोद्धार योजना का। उखड़ी हुई दीवारें, खस्ताहाल फर्श और वीरानी — ये बताने के लिए काफी हैं कि गांव की नियति पर सरकारी मुहर कितनी लापरवाह है।

ग्राम प्रधान और विकास अधिकारी: कहां हैं साहब लोग?

ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी वर्षों से गांव की शक्ल तक नहीं देखे। सफाईकर्मी भी ग्राम प्रधान के दरवाज़े तक हाजिरी लगाते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। बाकी गांव की गलियों को जैसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।

योजनाएं सिर्फ दीवारों पर, ज़मीन पर नहीं

स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, ग्रामीण सड़क योजना — इन सबके नाम दीवारों पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे जाते हैं, लेकिन गांववालों के जीवन में इनका कोई प्रभाव नहीं है। यहां विकास योजनाएं फाइलों में बंद हैं और गांव की जनता कीचड़ में।

प्रशासन से सवाल — कब तक और कितनी चुप्पी?

  • क्या ग्राम सचिवालय सिर्फ नाम के लिए बना है?
  • क्या सड़कों की मरम्मत आपातकालीन घटना बनने पर ही होगी?
  • क्या पंचायत प्रतिनिधियों का कर्तव्य सिर्फ वेतन लेना है?

यह रिपोर्ट सिर्फ दसई जोत की नहीं है, यह उन सैकड़ों गांवों की आवाज़ है, जिन्हें योजनाओं के नाम पर सिर्फ वादों की रोटियां सेंकने को मजबूर कर दिया गया है।

"विकास के नाम पर दीवारों पर रंग-रोगन और जमीनी हकीकत में गड्ढे—यही है आज के पंचायती राज की असलियत।"


 

 

और नया पुराने